Friday, April 11, 2008

भारतीय महिला (Indian Women)

यद्यपि भारतीय समाज में महिलाओं (women) का दर्जा अलग-अलग समय में अलग-अलग तरह का रहा है किन्तु यह भी सत्य है कि अत्यन्त प्राचीन युग से ही भारतवर्ष में महिलाओं (women) का उच्च स्थान रहा है। वे लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, काली आदि देवियों के रूप में पूजी जाती रही हैं। पतञ्जलि तथा कात्यायन की कृतियों में स्पष्ट उल्लेख है कि वैदिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं का समानाधिकार था। ऋग् वेद की ऋचाएँ बताती हैं कि महिलाओं को अपना वर चयन करने का पूर्ण अधिकार था और उनका विवाह पूर्ण वयस्क अवस्था में हुआ करता था।

किन्तु मध्यकाल महिलाओं की सामाजिक प्रतिष्ठा का पतन काल रहा। बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा-विवाह का निषेध आदि कुप्रथाएँ मध्ययुग की ही देन हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों का अधिकार हो जाने पर परदा प्रथा और राजपूतों के पराजय ने जौहर प्रथा को जन्म दिया।

इन सबके बावजूद भी महान महिलाओं का उदय होता ही रहा। रजिया सुल्तान दिल्ली की गद्दी पर बैठकर पूरे हिन्दुस्तान की मलिका बनीं। गोंड महारानी दुर्गावती ने 15 वर्षों तक शासन किया। चाँद बीबी ने मुगलों के आक्रमण से अहमदनगर की रक्षा की। ऐसे और भी कितने ही उदाहरण मिल जायेंगे।

ब्रिटिश काल में राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिराव फुले जैसे लोग नारी की स्थिति को पुनः सँवारने के प्रयास में जुट गये। सन् 1829 में राजा राममोहन राय के प्रयास से सती प्रथा का अन्त हुआ। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवाओं की स्थिति में सुधार तथा विधवा विवाह का आरम्भ के लिये जेहाद छेड़ दिया परिणामस्वरूप सन् 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम बना।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय महिलाओं की स्थिति में द्रुत गति से सुधार होना आरम्भ हो गया। वे शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, तकनीकी, राजनीति, मीडिया, सर्विस सेक्टर आदि सभी क्षेत्रों में समान रूप से भाग लेने लगीं। औरतों तथा पुरुषों का पूर्ण रूप से समान दर्जा हो गया।

आज तो आधुनिक महिलाएँ सभी क्षेत्रों में पुरुषों से आगे निकल जाने की होड़ में लग गईं हैं।

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