Thursday, June 12, 2008

थोड़ी दोस्ती निभा ली जायें...

दोस्ती के नगमें

फिक्र इतनी है उस खुदा को तुम्हारी
उसने भेज दी तुम्हारे लिये दुनिया सारी
एक आंसू भी न आने देंगे
ऐ दोस्त तेरी आंखों में
उस खुदा से ज्यादा फिक्र हमें है तुम्हारी



कही अंधेरा तो कही शाम होगी
हमारी हर खुशी आपके नाम होगी
कुछ मांगकर तो देखो ए दोस्त
होठों पर हंसी और हथेली पर जान होगी



भीगी पल्को के संग मुस्कुराते है हम
पलपल दिल को बहलाते है हम
दोस्त दूर है हमसे तो क्या हुआ
हर सांस में दोस्तो की आहट पाते है हम



किसी के पास कुछ न हो तो हंसती है दुनिया
किसी के पास सब कुछ हो तो जलती है दुनिया
और आपके पास मेरे जैसा दोस्त है
जिसके लिये तरसती है दुनिया



रेत की जरूरत रेगिस्तान को होती है
सितारों की जरूरत हर आसमान को होती है
और आप जैसे दोस्त की जरूरत
हर इंसान को होती है।



उगता हुआ सूरज रोशनी दे आपको
खिलता हुआ फूल खूशबू दे आपको
हम तो कुछ देने के काबिल कहाँ
पर देने वाला हर खुशी दे आपको



मन के कोने से एक आवाज आती है
हर पल दोस्तो की याद आती है
मन पूछता है पलपल हमसे
जिन्हें हम याद करते है
क्या उन्हें भी हमारी याद आती है?



नोंक-झोंक

पत्नीः मेरे इरादे बड़े नेक है, आप 1000 में से एक है
पतिः दिमाग के हम भी डॉन है पहले ये बता बाकी के 999 कौन है?

4 comments:

L.Goswami said...

nokjhok pasand aayi..aur jarur likhna

Lovely

Udan Tashtari said...

बढ़िया रचना और रोचक नोंकझोंक. लिखती रहो.

Abhishek Ojha said...

अच्छा लिखा है लिखती रहो...

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

बहुत अच्छे............तृप्ति...............यूँ ही आगे बढ़ती रहो............हम सबकी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं....और हाँ बेशक इस उम्र में तुम्हारी लेखनी कबीले-तारीफ़ है.!!